रात में देखा सपना इतना अटपटा है कि न छुपाते बन रहा है और न बताते बन रहा है।न बतानें पर देश की इज्जत खतरे में पड़्ती है और छुपाता हूँ तो अपनें प्रिय पड़ोसी पाकिस्तान की जान। तो भाई ब्लागर बन्धुओं मैं सपना बता कर अपना राष्ट्रधर्म निभाये दे रहा हूँ बाकी आप जानें और प्रधानमंत्री जी जानें --
ट्रिंग ट्रिंग.....हाँट लाइन पर फोन की घंटी की घन घन घनाहट होती है, हलो, मनमोहन भाई ज़रदारी बोल रहा हूँ.....हाँ... हाँ इस्लामाबाद से...पाकिस्तान से !
मन ही मन खुश होते और सोंचते हुए कि अच्छा अब जब अमेरिका नें कान मरोड़ा तब बच्चू को समझ में आया...हाँ...बोलिये ज़रदारी साहब....सलाम वालैकुम। मनमोहन जी ड़ाढ़ी खुजाते हुए बोले...
वालैकुम अस्सलाम! अरे भई मनमोहन भाई आप से एक बड़ी शिकायत है!
शिकायत मुझसे? क्या बात कर रहे ज़रदारी साहब? शिकायत तो मुझे आप से होंनी चाहिये...एक तो आप के लोग हमारे लोगो को मारते हैं..सरे आम पकड़े जाते है...सारे सबूत आप को दिये जाते हैं फिर भी आप लखवी और जो दूसरे मास्टर माइंड़ है उन्हें हमें सिपुर्द करनें के बज़ाय उल्टा मुझसे शिकायत कर रहे हैं?
अमाँ मनमोहन भई आप तो पारलियामेन्ट जैसा भाषण देंने लगे..अरे भई इसी लिए तो मैनें आप को इतनी रात प्रोटोकाल छोड़्कर फोन लगाया है कि कोई दूसरा न सुन ले...हाँ तो म्याँ मैं यह कह रिया था कि वो लखवी को देंनें में हमें, वैसे तो कोई ऎतराज नहीं है......लेकिन लखवी को लेकर आप करेंगे क्या?
करेंगे क्या का, क्या मतलब?
अरे भई अगर हम उसे आप को दे भी देते हैं तो उसका आप करेंगे क्या??
अरे! ज़रदारी साहब मुकदमा चलायेंगे...उसका जुर्म साबित करेंगे और सज़ा देंगे?
क्या मनमोहन भाई..क्यों इतनीं रात गये मज़ाक करते हैं!
बुरा मानते हुए..मज़ाक? कैसा मज़ाक?मज़ाक तो आप कर रहे हैं।
अरे मनमोहन भाई..समझो हमनें लखवी को आप को दे दिया....फिर आप मुकदमा चलायेंगे....समझो इसमें आप का यह चुनाव तो निकल जाएगा...
हलो हलो...इसीलिए तो कह रहा हूँ कि जरा जल्दी कीजिये....चुनाव तो मई में होंगे...
अरे मनमोहन भाई....राजनीति में ऎसा कहीं होता है..हमें अपनें देश की राजनीति भी तो देखनीं है....आप जब माँगाना बन्द करेंगे तो मामला ठंड़ा होनें में दो चार महिनें जाँएगे.....हम जुलाई अगस्त तक आपको ड़िलिवरी दे पाऎगे..
तो ठीक है आप जुलाई में दे दीजिये.....
लेकिन भाई हम फिर कह रहे हैं कि आप लेकर करेंगे क्या...हम जुलाई में आपको देंगे.....आप ४-६ साल मुकदमा चलायेगे....फिर जुर्म को देखते हुए कम से कम फाँसी की सजा सुनाई जायेगी......लेकिन मनमोहन भाई हम फिर कह रहे हैं कि आप बेकार मे लखवी को मांग रहे है....
अज़ीब अहमक पनें की बात कर रहें हैं......बार बार करेंगे क्या- करेंगे क्या कर रहे हैं....जो जुर्म किया है उसकी सजा देंगे.....फाँसी देंगे.....और क्या करेंगे.........
मनमोहन भाई अहमकाना बात हम नहीं आप कर रहे हैं........आज तक “अफज़ल गुरु को तो फाँसी दे नहीं पाये”...सुप्रीमकोर्ट के जज़मेन्ट के बाद भी......बात कर रहे हैं.... लखवी को फाँसी देंने की....मैं फिर कह रहा हूँ आप सोंच लो,मोहतर्मा सोनिया गाँधी से पूँछ लीजिये,इस ज़ानिब और किसी से मशविरा करना हो कर लीजिये...फिर बताइये,कह कर जैसे ही ज़रदारी साहब नें फोन रखा मेरी नींद खुल गई।
अब भाई मनमोहन जी और उनका तबेला क्या सोंचता है नहीं मालूम पर तब से मैं सोंच रहा हूँ कि अगला बात तो पते की कर रहा है, एक ‘अफज़ल गुरू’ ही गले में अटके हुए हैं, उसी बाबत सरकार तय नहीं कर पा रही है अब और घण्टा लटकानें की स्थिति में, कुर्सी चिपक और वोट लपक ये राष्ट्रीय शर्म बन चुके नेताओं से क्या देश का स्वाभिमान और जनता सुरक्षित महसूस कर पायेगी? क्या कसाब या लखवी को ये फाँसी दे पाऎंगे???
गुरुवार, 8 जनवरी 2009
मनमोहन जी लख़वी को लेकर करेंगे क्या?--ज़रदारी
लेबल: मुम्बई पर आक्रमण
प्रस्तुतकर्ता सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ पर 4:31 pm
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4 टिप्पणियाँ:
सही कह रहे हैं जरदारी जी - बहुत सेंसिबल बात। लख़वी को लेना सांप छछुन्दर की गति वाली बात होगी। निगलना भी मुश्किल, उगलना भी मुश्किल।
शायद यही सच है कि दोनो ओर से हांव हांव होती रहेगी और अगले हमले से किसी नये लखवी-करोड़वी की मांग होगी।
ह
इज्राइल थोड़े ही है हमारा देश कि हमास के अड्डों पर बमबारी कर दे!
... मजा आ गया, प्रसंशनीय लेख है।
वाकई बात तो मियां जरदारी ने पते कि की है कि आखिर "करेंगे क्या?"
Bahut Sunder !
Mere Mann Ki Baat!
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