रविवार, 16 नवंबर 2008

क्या आप समलैंगिक हैं या कहलाना पसंद करेंगे?

आज रविवार रात्रि ९.३० बजे एन०डी०टी०वी० पर ‘दोस्ताना’फिल्म के बहानें से समाचार वाचिका नग्मा और एक अन्य नें बहस चला दी समलैंगिकता पर।न्यूजरूम में सशरीर उपस्थित थे अशोक रावजी अध्यक्ष ‘हमसफर’,जिन्हें विषय विशेषज्ञ बताया जा रहा था और जो बार बार यह बता रहे थे कि समलैंगिकता जन्मजात होती है।टेलीकान्फ्रेंसिंग में पाँच अन्य व्यक्त्ति, अभिनेता समीर सोनी जो मधु भण्डारकर की इसी विषय पर बनीं फिल्म के हीरो रहे थे और समलैंगिक समबन्धों को स्वाभाविक,प्राकृतिक एवं गम्भीर विषय बता रहे थे,के अतिरिक्त जान अब्राहम,अभिषेक बच्चन और ‘दोस्ताना’ के निर्माता निर्देशक तरुण भी चर्चा में शरीक थे और जिनका कहना था कि इस विषय को यह फिल्म ह्युमर के रुप मे प्रस्तुत करती है और उनका उद्देश्य इस विषय पर कोई गंभीर चर्चा चलाना नहीं था।
पाँचवें और अन्तिम व्यक्त्ति थे दिल्ली के पूर्व पुलिस कमिशनर श्री ककक्ड़ जो यह कहनें का प्रयास कर रहे थे कि समलैंगिकता न केवल अप्राकृतिक एवं भारतीय संस्कृति के विपरीत है,वरन दुनिया में मात्र ७-८ देशों में ही इसकी कानून अनुमति दी गई है और यह भी कि अमेरिका जैसे देश में भी मात्र तीन स्टेट्स में यह कानून वैध करार दिया गया था।श्री ककक्ड़ के अनुसार समलैंगिकता को अनुमति देनें में उत्तराधिकार,सम्पत्ति,विवाह और अपराध सम्बन्धी कानूनों में भी बदलाव लाना पड़ेगा।
श्री ककक्ड़ के संस्कृति विरुद्ध और कानूनी अड़चनों के तर्क पर अशोकजी एवं अभिनेता समीर सोनी जी को गंभीर आपत्ति थी।उनके अनुसार संस्कृति क्या होती है और कानून नहीं हैं तो बनाए जा सकते हैं?उनके अनुसार शास्त्रों एवं पुराणों मे भी वर्णित यह प्राकृतिक एवं जन्मजात प्रवृत्ति है और इस पर गंभीरता,सहानुभूति एवं मानवीय प्रवृत्ति की आवश्यकता मानकर निर्णय किया जाना चाहिये।
जितनें शास्त्र और पुराण मैनें पढ़े हैं मुझे नहीं याद पड़्ता कि कहीं समलैंगिकता का वर्णन मिलता है।जहाँ तक रही संस्कृति कि बात तो मुझे लगता है कि बहुतों को संस्कृति शब्द का अर्थ ही नहीं मालूम और अशोकजी एवं समीरजी इस के अपवाद नहीं लगते। हाँ संस्कृति से उनका आशय यदि कल्चर से है तो वहाँ तो ब्लड़ से लेकर यूरीन तक का कल्चर होता है।समलैंगिकता जन्मजात या प्राकृतिक तो कदापि नहीं हो सकती।
विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण सहज,स्वाभाविक और प्राकृतिक होता है,यह स्वतः सिद्ध है,बहुत सारी आधुनिक विज्ञान की खोज भी यही सिद्ध करतीं है।कुत्तों बिल्लियों तथा अन्य पशुओं मे बचपनें के खिलवाड़ में कभी कभी यह दिखता है लेकिन उम्र पाकर वह भी नहीं देखा जाता।अगर यह जन्मजात और प्राकृतिक है तो विकृति या ‘परवर्जन’ क्या होता है?गृहमंत्री और स्वास्थ्यमंत्री में इस विषय पर युद्ध की स्थिति बनी हुयी है। स्वास्थ्यमंत्री रामदौस समलैगिकता के प्रबल समर्थक हैं,क्यों?

5 टिप्पणियाँ:

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

लगता नहीं कि समलैंगिकता सहज या नैसर्गिक मानव स्वभाव है। पर कुछ समलैंगिक रहे होंगे पहले भी। यह अवश्य है कि साहित्य - इतिहास में स्थान न पा सके।
समलैंगिकता को बढ़ावा देना वैसा ही गलत है जैसे फ्री सेक्स या लिवइन रिलेशन को उभारना।

बेनामी ने कहा…

अपने अंदर स्वीकार करने की शक्ति बढानी होगी . प्रकृति ने स्त्री पुरूष के संबंधो के अलावा भी बहुत से संबंधो की संरचना की है क्यों इस का जवाब ना खोज कर अग्रसर होना होगा प्रकृति जनित हर प्राणी को लिंग जाती रंग इत्यादि से ना चाह कर केवल और केवल प्राणी के रूप मे स्वीकारने की

Girish Kumar Billore ने कहा…

स्वास्थ्यमंत्री रामदौस समलैगिकता के प्रबल समर्थक हैं,वो खुद ‘गे’ हैं क्या?
IS PANKTI PAR PUNRVICHAR HO
SHESH SHUBH

सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ ने कहा…

*रचनाजी,नारी के माँ,बहन,पुत्री,पत्नी,बुआ,मामी,भाभी,सास,बहू आदि ऎसे स्वाभाविक और प्रकृतिदत्त समबन्ध हैं जो न केवल सामाजिक रूप से स्वीकृत हैं वरन्‌ मेडिकली भी तर्कसंगत हैं।इसके अतिरिक्त स्त्री का स्त्री से या पुरुष का पुरुष से समबन्ध न केवल अप्राकृतिक है वरन्‌ चिकित्सा शास्त्र और मनोविज्ञान के आधार पर तर्कसंगत नहीं है।पुरुषों में तो अक्सर यह आपराधिक कृत्य के रुप में सामनें आता है विशेषकर बालकों में।फिर भी असहमति के लिए आप स्वतंत्र हैं।
*गिरीशजी,आप का सुझाव शिरोधर्य और तदनुरूप संसोधन कर दिया है।

बेनामी ने कहा…

सुमन्त मिश्र ‘कात्यायन’ जी मे किसी "सम्बन्ध" को बनाने की बात नहीं कर रही थी . श्याद सही कह ना पाई . मेरा मानना हैं की स्त्री , पुरूष , समलैंगिक , हिजडे इत्यादि सब इश्वर के बनाए हैं . सो हम को सब को स्वीकार करना होगा . नारी किस रूप मे स्वीकार्य हैं या नहीं या पुरूष पुरूष से सम्बन्ध बनाता हैं क्यूँ , ग़लत , सही इत्यादि की परिधि मे मेरे कमेन्ट को ना देखा जाए क्युकी वो संकुचित दायरे की सोच हैं


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