जन्म लेनें के बाद किसी को भी शायद यह निश्चित तौर पर ज्ञात नहीं होता है कि उसका भविष्य क्या होगा किन्तु एक सत्य सब को ज्ञात होता है‘जातस्य हि ध्रुवो मृत्यु’ कि जो पैदा हुआ है वह मरेगा अवश्य।मरनें के बहानें ज़ुदा हो सकते हैं,कफ़न दफ़न के तरीके अलग हो सकते हैं,किन्तु मरेगा अवश्य।अपनें अनुभव से वह यह भी जान जाता है कि शिशु जब उत्पन्न होता है तो उसकी मुट्ठी बन्द होती है।मानों बन्द मुट्ठी में पूर्वजन्म के संस्कारों का खज़ाना बन्द हो।बन्द मुट्ठी जैसे इस बात का इशारह हो कि जिस परवरदिगार ए आलम नें, परात्पर परब्रह्म नें,पैदा किया है उसनें पैदा हुए हर इंशा को कुछ नियामतों के साथ पैदा किया है।मुट्ठी में बन्द यह उपहार नियामतें न केवल स्वयं के लिए हैं वरन घर परिवार पास पड़ॊस और दुनियाँ के लिए भी हैं जो उसके माध्यम से भेजी गयीं हैं।उन नियामतों मे सबसे प्रमुख है बुद्धि,विवेकयुक्त बुद्धि।यही, विवेकबुद्धि ही, स्रष्ट हुए जगत के अन्य जड़ चेतन से मनुष्य को श्रेष्ठ बनाती है।उस जगतनियन्ता सच्चिदानन्द की यह अपेक्षा रहती है कि मनुष्य उस जैसा सत चित आनंद युक्त बनें।
बन्द मुट्ठी के विपरीत वह एक और संकेत देता है कि हर मरे हुए का हाथ पसरा हुआ रह्ता है,मरते वक्त मुट्ठी खुली हुई रहती है।यह संकेत अत्यन्त स्पष्ट तरीके से बताता है कि उसकी दी हुयी नियामतें बाँटनें के लिए हैं संग्रह करनें के लिए नहीं।जो कुछ उस जगत्त्निंयंता नें हमें दिया है हमें यहीं छोड़्कर जाना होगा।संदेश न केवल स्पष्ट है अपरिवर्तनीय भी है।जैसे उसके द्वारा रचित प्रकृति का हर अंग बिना भेद भाव के अपना अवदान सर्वजन हिताय कर रहा है वैसे ही तुम्हें भी करना होगा।किन्तु जहाँ जड़ और पशु कहे जानें वाला जीव जगत स्वभावतः उसके निर्देश का पालन करते सर्वत्र दिखायी पड़्ते हैं वहीं मनुष्य अधिकांश में मनमानी करता दिखायी पड़्ता है।यही न केवल तमाम बुराईयों की जड़ है वरन् आज की तथाकथित प्रगतिशील दुनियाँ में भांति भांति के तनावों और युद्धों का कारक भी।
गोवा से प्रकाशित होनें वाले अंग्रेजी समाचारपत्र‘हेराल्ड’के १७ अगस्त २००८ के अंक में प्रकाशित यह समाचार यूँ तो खुद अपनी कहानी बयाँ कर रहा है किन्तु ४८०००रु०,१४लाख रु० या फ़िर लगभग १करोड़ रु० प्रतिदिन अर्जित करने वाले लोगों की दुनिया का ताश का महल एक न एक दिन तो ढ़हना ही था।यह जो दस्युओं का स्वर्ग बन रहा था उसका मन्दी रुपी दानवी सुरसा के द्वारा निगला जाना क्या अस्वाभाविक कहा जा सकता है?
सोवियत रुस और चीन के ग्लास्नास्त और पेरोस्त्राइका/साम्यवादी नीतियों से यूटर्न लेनें और पूँजीवाद के मुँहभरा गिरनें के बाद,यह तो मान ही लेना चाहिये की दोनों नीतियाँ न केवल दोषपूर्ण है वरन् मानवमात्र की आवश्यकताओं का स्थायी समाधान भी नहीं दे सकतीं।विकल्प भारत दे सकता है बशर्ते कर्णधार यह तय करें कि जगत्गुरु बनना है या सोंने की चिड़िया।
शनिवार, 1 नवंबर 2008
मुट्ठी बाँधकर आया जगत में हाथ पसारे जायेगा !
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4 टिप्पणियाँ:
बेहतरीन अभिव्यक्ति. बधाई.
मंदी अस्थायी है...फिर तेज़ी आएगी।
सयाने यही कहते हैं।
सयाने सुन रहे हैं, गुन रहे हैं।
आंधी आती है। तने वृक्ष टूट जाते हैं। घास लेट जाती है। फिर खड़ी हो जाती है।
मुख्य है तन्यता - व्यक्तित्व में।
२ को लिखी यह पोस्ट पता नहीं कैसे आज ही देखने को मिली.. बात तो माइनिंग के पूरे माम्ले पर बड़ा लेख लिखने की हुई थी..गोवा से सम्बन्धित देखकर मैंने सोचा कि वही है..वैसे बात ये भी मौज़ूँ हैं..
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